जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित: शिक्षा, भाषा ज्ञान और विवाद
नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की पहली महिला कुलपति शांतिश्री धुलीपुडी पंडित, जो अक्सर चर्चा में रहती हैं, एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार वे शिक्षा मंत्रालय के निशाने पर हैं, जिसने एक महत्वपूर्ण सम्मेलन में उनकी अनुपस्थिति के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा है। आइए, जानते हैं उनकी शिक्षा, बहुभाषी ज्ञान और हालिया विवाद के बारे में।
प्रारंभिक जीवन और अकादमिक सफर
शांतिश्री धुलीपुडी पंडित का जन्म 15 जुलाई, 1962 को सेंट पीटर्सबर्ग, रूस (तत्कालीन USSR) में हुआ था। उन्होंने 1988 में गोवा विश्वविद्यालय में शिक्षण के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत की। वर्ष 1993 में वे पुणे विश्वविद्यालय चली गईं, जहाँ उन्होंने अपनी अकादमिक यात्रा जारी रखी।
जेएनयू की कुलपति बनने से पहले, वे महाराष्ट्र स्थित सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय की कुलपति थीं।
शिक्षा और डिग्रियां
पंडित के पास एमफिल और पीएचडी दोनों की डिग्री है, और उन्होंने ये दोनों ही डिग्रियां जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से हासिल की हैं। पढ़ाई-लिखाई में आगे रहने के साथ ही वे कई प्रतिष्ठित संगठनों में महत्वपूर्ण पदों पर रही हैं, जिनमें अमेरिकन स्टडीज रिसर्च इंस्टीट्यूट, हैदराबाद; इंडियन एसोसिएशन और अमेरिकन स्टडीज; ऑल इंडिया पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन; द भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट; और इंडियन सेक्युलर सोसाइटी शामिल हैं।
बहुभाषी ज्ञान और लेखन
शांतिश्री धुलीपुडी पंडित कई भाषाओं की जानकार हैं। उन्हें अंग्रेजी, हिंदी, तमिल, मराठी, संस्कृत और तेलुगु भाषाओं का ज्ञान है। इसके अलावा, उन्होंने दो महत्वपूर्ण किताबें भी लिखी हैं:
- 'पार्लियामेंट एंड फॉरेन पॉलिसी इन इंडिया' (Parliament and Foreign Policy in India), जो 1990 में प्रकाशित हुई।
- 'रीस्ट्रक्चरिंग एनवायर्नमेंटल गवर्नेंस इन एशिया-एथिक्स एंड पॉलिसी' (Restructuring Environmental governance in Asia-Ethics and Policy), जो 2003 में प्रकाशित हुई।
हालिया विवाद: शिक्षा मंत्रालय का स्पष्टीकरण
हाल ही में, शिक्षा मंत्रालय (MoE) ने गुजरात में 10-11 जुलाई 2025 को दो दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया था। यह कार्यक्रम नई शिक्षा नीति 2020 के 5 साल के कार्यान्वयन के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था, और कुलपति को इसके लिए बहुत पहले से आमंत्रित किया गया था। हालांकि, इसी दिन जेएनयू में भी एक कार्यक्रम होने के कारण कुलपति शिक्षा मंत्रालय के कार्यक्रम में उपस्थित नहीं हो पाईं। अब अपनी अनुपस्थिति को लेकर उन्हें शिक्षा मंत्रालय को जवाब देना है, जिससे यह मामला चर्चा का विषय बन गया है।
शांतिश्री धुलीपुडी पंडित का अकादमिक और प्रशासनिक करियर प्रभावशाली रहा है, जिसमें उनकी बहुभाषी क्षमता और लेखन कार्य भी शामिल हैं। जेएनयू की पहली महिला कुलपति के रूप में उनकी नियुक्ति एक महत्वपूर्ण कदम था। हालाँकि, हालिया विवाद उनकी सार्वजनिक भूमिका की चुनौतियों को उजागर करता है। यह देखना बाकी है कि शिक्षा मंत्रालय के स्पष्टीकरण पर उनका क्या जवाब होता है।