हरदीप पुरी ने नॉर्वे के नॉर्दर्न लाइट्स CO2 टर्मिनल का दौरा किया, भारत की ऊर्जा क्षमताओं को बढ़ाने पर जोर
नई दिल्ली, 7 जुलाई (आईएएनएस)। केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सोमवार को कहा कि भारत सरकार देश की ऊर्जा क्षमताओं को उन्नत बनाने के लिए विशेषज्ञता हासिल करने के उद्देश्य से नॉर्वे की विभिन्न परियोजनाओं पर विचार कर रही है। यह दौरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की ऊर्जा सुरक्षा और महत्वाकांक्षी ऊर्जा ट्रांजिशन एजेंडे को गति देने के प्रयासों का हिस्सा है।
नॉर्दर्न लाइट्स CO2 टर्मिनल का दौरा
केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर एक पोस्ट में बताया, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ऊर्जा सुरक्षा हासिल करने के भारत के प्रयासों को गति प्रदान करने के लिए मैंने नॉर्वे के बर्गन में नॉर्दर्न लाइट्स सीओ2 टर्मिनल का दौरा किया।" उन्होंने आगे कहा कि यह परियोजना नॉर्वे सरकार द्वारा वित्त पोषित है और इक्विनोर, शेल और टोटल एनर्जीज की साझेदारी वाली कार्बन भंडारण की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक है।
भारत के लिए नॉर्वे की विशेषज्ञता का महत्व
पुरी ने इस बात पर जोर दिया कि भारत अपनी ऊर्जा क्षमताओं को उन्नत और विस्तारित करने के लिए नॉर्दर्न लाइट्स CO2 टर्मिनल जैसी परियोजनाओं की समीक्षा कर रहा है। उन्होंने कहा, "गहरे पानी की खोज, भूकंपीय तेल सर्वेक्षण, अपतटीय पवन और कार्बन कैप्चर और भंडारण (CCS) टेक्नोलॉजी में नॉर्वे की विशेषज्ञता भारत के महत्वाकांक्षी ऊर्जा ट्रांजिशन के एजेंडे के साथ अच्छी तरह से मेल खाती है।" यह सहयोग भारत को अपने जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने में मदद कर सकता है।
कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) टेक्नोलॉजी क्या है?
कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) एक महत्वपूर्ण तकनीक है जिसमें बिजली संयंत्रों और कारखानों जैसे औद्योगिक स्रोतों से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन को कैप्चर करना, उसका परिवहन करना और फिर उसे भूमिगत रूप से संग्रहीत करना शामिल है, जिससे इसे वायुमंडल में जाने से रोका जा सके। यह प्रक्रिया ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन को कम करने की एक महत्वपूर्ण रणनीति है।
CCS प्रक्रिया के चरण:
कैप्चर: इस प्रक्रिया में उत्सर्जन के स्रोत, जैसे बिजली संयंत्रों या औद्योगिक सुविधाओं पर अन्य गैसों से CO2 को अलग करना शामिल है। इसमें विभिन्न कैप्चर विधियां मौजूद हैं:
पोस्ट-दहन कैप्चर: फ्लू गैस से CO2 को अलग करना।
प्री-दहन कैप्चर: ईंधन दहन से पहले CO2 को अलग करना।
ऑक्सी-ईंधन दहन: शुद्ध ऑक्सीजन के साथ ईंधन को जलाना, जिससे उच्च सांद्रता वाली CO2 स्ट्रीम बनती है।
परिवहन: कैप्चर की गई CO2 को आमतौर पर सुपरक्रिटिकल स्टेट (तरल जैसी) में कंप्रेस्ड किया जाता है, जिसे पाइपलाइनों, जहाजों या अन्य साधनों के माध्यम से भंडारण स्थल तक ले जाया जाता है।
भंडारण: CO2 को भूगर्भीय संरचनाओं जैसे कि समाप्त हो चुके तेल और गैस भंडार, खारे पानी (सेलाइन एक्वीफर्स) या अन्य उपयुक्त चट्टान संरचनाओं में गहराई से इंजेक्ट किया जाता है। इन संरचनाओं को यह सुनिश्चित करने के लिए चुना जाता है कि CO2 लंबे समय तक वायुमंडल से अलग रहे।
CO2 को वायुमंडल में प्रवेश करने से रोककर जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए CCS एक महत्वपूर्ण तकनीक है। यह उन उद्योगों को डीकार्बोनाइज करने में मदद कर सकता है जो अधिक CO2 उत्सर्जन करते हैं और जहां अन्य उत्सर्जन-कमी के विकल्प सीमित या महंगे हो सकते हैं।