अदाणी समूह में LIC के निवेश पर 'वाशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट संदेह के घेरे में, विशेषज्ञों ने उठाए राजनीतिक इरादों पर सवाल
नई दिल्ली (द ट्रेंडिंग पीपल ब्यूरो) - भारत के सबसे बड़े व्यापारिक समूहों में से एक, अदाणी समूह में जीवन बीमा निगम (LIC) के निवेश को लेकर हाल ही में 'द वाशिंगटन पोस्ट' में प्रकाशित एक रिपोर्ट पर देश के वित्तीय और राजनीतिक विशेषज्ञों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। विश्लेषकों ने इस रिपोर्ट की टाइमिंग पर गंभीर सवाल उठाए हैं और इसे राजनीतिक रूप से प्रेरित करार दिया है, विशेष रूप से आगामी बिहार विधानसभा चुनावों से पहले विवाद पैदा करने के उद्देश्य से।
जानकारों का मत है कि यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है जब भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत गति से आगे बढ़ रही है और देश के शेयर बाजारों में निवेशकों का भरोसा अपने चरम पर है। ऐसे में, एक घरेलू वित्तीय संस्थान द्वारा किए गए निवेश को राजनीतिक रंग देना तर्कसंगत नहीं है।
'राजनीतिकरण निवेशकों के हित में नहीं': विशेषज्ञ
भारत की सबसे बड़ी संस्थागत निवेशक, LIC के निवेश फैसलों के राजनीतिकरण के प्रयासों की कड़ी आलोचना की गई है।
इनगवर्न रिसर्च सर्विसेज के संस्थापक और प्रबंध निदेशक श्रीराम सुब्रमण्यन ने इस मुद्दे पर समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए स्पष्ट किया कि भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी द्वारा किए गए निवेश निर्णयों का राजनीतिकरण करना न तो निवेशकों के हित में है और न ही व्यापक अर्थव्यवस्था के।
सुब्रमण्यन ने सवाल उठाया, "जब विदेशी निवेशक भारतीय कंपनियों में स्वतंत्र रूप से निवेश कर सकते हैं और लाभ कमा सकते हैं, तो LIC को ऐसा करने से क्यों रोका जाना चाहिए?"
विशेषज्ञों का कहना है कि विदेशी संस्थाएं भारतीय इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनियों से लगातार मुनाफा कमा रही हैं। ऐसे में, LIC के निवेश पर सवाल उठाना तर्कसंगत नहीं है, और इसका संभावित उद्देश्य घरेलू संस्थानों की विश्वसनीयता को कमजोर करना हो सकता है।
रिपोर्ट का आरोप और LIC का खंडन
अमेरिकी मीडिया आउटलेट की रिपोर्ट में यह दावा किया गया था कि भारत सरकार ने LIC पर अदाणी समूह में $3.9 बिलियन (लगभग ₹32,000 करोड़) का निवेश करने का दबाव बनाया था। इस कथित निवेश में मई 2025 में किया गया $568 मिलियन (लगभग ₹5,000 करोड़) का निवेश भी शामिल था।
हालांकि, LIC ने तुरंत इस लेख पर अपना आधिकारिक रुख स्पष्ट कर दिया। भारत की सबसे बड़ी बीमा कंपनी ने इस रिपोर्ट का आधिकारिक खंडन जारी करते हुए इसे "झूठा, निराधार और सच्चाई से कोसों दूर" बताया है।
'विदेशी नैरेटिव' और हिंडनबर्ग कनेक्शन
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक तहसीन पूनावाला ने अदाणी समूह को लक्षित करने वाले 'विदेशी नैरेटिव' (विदेशी दृष्टिकोण) की आलोचना की। उन्होंने याद दिलाया कि कुछ समय पहले शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग द्वारा भी इसी तरह के हमले किए गए थे, जो बाद में जाँच में आधारहीन साबित हुए थे।
पूनावाला ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, "भारतीय कंपनियों को 'हिट एंड रन' करने की यह विदेशी नीति देश की अर्थव्यवस्था को भी गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।" उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसी रिपोर्टें राजनीतिक हित साधने के लिए बनाई जाती हैं, न कि वित्तीय पारदर्शिता के लिए।
आँकड़ों की बात: LIC का न्यूनतम एक्सपोजर
विशेषज्ञों ने अदाणी समूह में LIC के निवेश के अनुपात को भी स्पष्ट किया, जो रिपोर्ट की भयावहता को कम करता है:
- LIC की कुल संपत्ति: LIC ₹57 लाख करोड़ से अधिक की विशाल संपत्ति का प्रबंधन करती है।
- इक्विटी निवेश: इस कुल संपत्ति में से लगभग ₹14.5 लाख करोड़ इक्विटी में लगे हुए हैं।
- अदाणी में एक्सपोजर: अदाणी समूह में LIC का कुल एक्सपोजर लगभग ₹56,000 करोड़ का है।
- अनुपात: यह एक्सपोजर LIC के कुल पोर्टफोलियो के 1 प्रतिशत से भी कम है।
पूनावाला ने यह भी बताया कि अदाणी समूह में किए गए निवेश से LIC को अब तक केवल फायदा ही हुआ है, न कि कोई नुकसान।
यह आँकड़ा इस बात पर बल देता है कि LIC का निवेश एक विविध और संतुलित पोर्टफोलियो का हिस्सा है, और एक छोटे से हिस्से को विवाद का विषय बनाना अनुचित है।
निष्कर्ष: विवाद का समय और राजनीतिक उद्देश्य
वित्तीय और राजनीतिक हलकों में इस बात पर सर्वसम्मति है कि 'द वाशिंगटन पोस्ट' की रिपोर्ट की टाइमिंग संदिग्ध है। भारत में आगामी राजनीतिक घटनाक्रम, विशेषकर बिहार विधानसभा चुनावों से ठीक पहले, इस तरह के संवेदनशील वित्तीय मुद्दे को उठाना राजनीतिक विवाद पैदा करने के स्पष्ट उद्देश्य को दर्शाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह केवल अदाणी समूह या LIC को निशाना बनाने का मामला नहीं है, बल्कि भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र की वृद्धि और वैश्विक स्तर पर देश की बढ़ती आर्थिक प्रतिष्ठा को बाधित करने का प्रयास है। जैसा कि LIC ने स्पष्ट कर दिया है, यह रिपोर्ट "झूठी और निराधार" है, और भारतीय निवेशक समुदाय से आग्रह किया गया है कि वे इस तरह के राजनीतिक रूप से प्रेरित नैरेटिव से प्रभावित न हों।