वोकल फॉर लोकल के प्रणेता 'सार्वजनिक काका': गणेश वासुदेव जोशी ने कैसे शुरू किया स्वदेशी आंदोलन?(source : IANS) ( Photo Credit : IANS)
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत 'आत्मनिर्भर भारत' के सपने को साकार करने की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है। इस दृष्टिकोण को मजबूती देने वाला उनका 'वोकल फॉर लोकल' अभियान स्वदेशी उत्पादों को अपनाने और आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने का एक सशक्त माध्यम बन चुका है। पीएम मोदी ने कई बार कहा है कि यह अभियान केवल आर्थिक स्वावलंबन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र निर्माण में हर नागरिक की भागीदारी का प्रतीक है। हमारा एक छोटा सा कदम, जैसे स्वदेशी वस्तुओं को चुनना, भारत की प्रगति में बड़ा योगदान दे सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि स्वदेशी अपनाने के असली प्रणेता कौन थे?
स्वदेशी के इस विचार को पहली बार भारत में प्रस्तुत करने और इसे एक आंदोलन का रूप देने वाले महान व्यक्तित्व थे गणेश वासुदेव जोशी, जिन्हें प्यार से 'सार्वजनिक काका' के नाम से भी जाना जाता है। आइए, जानते हैं उनके जीवन और स्वदेशी आंदोलन में उनके अमूल्य योगदान के बारे में।
गणेश वासुदेव जोशी: प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
गणेश वासुदेव जोशी का जन्म 9 अप्रैल 1828 को महाराष्ट्र के सातारा में हुआ था। उनके पिता वासुदेव जोशी थे। उनकी औपचारिक शिक्षा केवल मराठी भाषा में हो पाई थी, लेकिन ज्ञान के प्रति उनकी अदम्य इच्छा ने उन्हें बड़े होने पर निजी तौर पर अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए प्रेरित किया। यह उनकी दूरदर्शिता को दर्शाता है, क्योंकि उस दौर में अंग्रेजी ज्ञान ब्रिटिश शासन और वैश्विक विचारों को समझने के लिए महत्वपूर्ण था।
'सार्वजनिक सभा' और स्वदेशी का आह्वान (1870 का दशक)
गणेश वासुदेव जोशी ने 1870 के दशक में पुणे में 'सार्वजनिक सभा' की स्थापना की। यह संस्था ब्रिटिश शासन के तहत भारतीयों के अधिकारों और कल्याण के लिए काम करने वाली एक महत्वपूर्ण मंच बनी। इसी मंच से जोशी ने स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देकर भारत की आर्थिक निर्भरता को कम करने का आह्वान किया। उनका यह विचार न केवल आर्थिक स्वावलंबन का प्रतीक था, बल्कि ब्रिटिश शासन की आर्थिक नीतियों के खिलाफ एक सशक्त संदेश भी था, जो भारत के धन को इंग्लैंड ले जा रही थीं।
जोशी का मानना था कि जब तक भारत आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होगा, तब तक उसे वास्तविक स्वतंत्रता नहीं मिल सकती। उन्होंने लोगों से अपील की कि वे ब्रिटिश निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार करें और अपने देश में बने उत्पादों को अपनाएं। यह एक क्रांतिकारी विचार था जिसने धीरे-धीरे पूरे देश में जड़ें जमा लीं।
खादी पहनने की शपथ: एक ऐतिहासिक कदम
गणेश वासुदेव जोशी पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 12 जनवरी 1872 को खादी पहनने की शपथ ली और जीवनभर इसका दृढ़ता से पालन किया। उन्होंने खादी के उपयोग को बढ़ावा देकर स्वदेशी भावना को बल दिया, जो बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना। खादी केवल एक कपड़ा नहीं था, बल्कि यह आत्मनिर्भरता, सादगी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक बन गया। जोशी का यह व्यक्तिगत उदाहरण लाखों भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना।
बाद में, इस स्वदेशी भावना को बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने बंगाल विभाजन (1905) के दौरान और अधिक मजबूती प्रदान की। बंगाल विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन एक बड़े जन आंदोलन के रूप में उभरा, जिसमें ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार और स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा देना मुख्य रणनीति बन गई। इस प्रकार, गणेश वासुदेव जोशी द्वारा बोया गया बीज एक विशाल वृक्ष बन गया, जिसने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अन्य रुचियां और योगदान
गणेश वासुदेव जोशी को कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी गहरी रुचि थी। वे मानते थे कि वैज्ञानिक ज्ञान के साथ खेती में नए प्रयोग किए जाने चाहिए ताकि किसानों की आय बढ़ाई जा सके और देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। उनका यह दृष्टिकोण आधुनिक कृषि पद्धतियों के महत्व को दर्शाता है।
गणेश वासुदेव जोशी, जिन्हें 'सार्वजनिक काका' के नाम से जाना जाता है, का निधन 25 जुलाई 1880 को हुआ। उनके सामाजिक और स्वदेशी कार्यों ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व बनाया।
'सार्वजनिक काका' की विरासत और 'वोकल फॉर लोकल'
गणेश वासुदेव जोशी की विरासत आज भी प्रासंगिक है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 'वोकल फॉर लोकल' अभियान 'सार्वजनिक काका' द्वारा शुरू किए गए स्वदेशी आंदोलन की ही एक आधुनिक अभिव्यक्ति है। यह अभियान भारतीयों को स्थानीय उत्पादों को खरीदने, उनका प्रचार करने और उन्हें वैश्विक मंच पर ले जाने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह न केवल छोटे व्यवसायों और कारीगरों को सशक्त बनाता है, बल्कि यह भारत को आर्थिक रूप से मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य को भी प्राप्त करने में मदद करता है।
जिस तरह गणेश वासुदेव जोशी ने अपने समय में स्वदेशी को एक जन आंदोलन बनाया था, उसी तरह 'वोकल फॉर लोकल' भी आज हर भारतीय को राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनने का अवसर दे रहा है। यह दिखाता है कि कैसे इतिहास के सबक वर्तमान में भी हमें दिशा दे सकते हैं और भविष्य के लिए एक मजबूत नींव रख सकते हैं।
निष्कर्ष
गणेश वासुदेव जोशी, जिन्हें 'सार्वजनिक काका' के नाम से जाना जाता है, भारतीय इतिहास के एक ऐसे गुमनाम नायक हैं जिन्होंने स्वदेशी के विचार को पहली बार प्रस्तुत किया। उनका जीवन और कार्य हमें आर्थिक आत्मनिर्भरता, सामाजिक न्याय और राष्ट्र निर्माण के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता की याद दिलाता है। आज जब भारत 'आत्मनिर्भर भारत' और 'वोकल फॉर लोकल' के माध्यम से वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना रहा है, तब 'सार्वजनिक काका' जैसे दूरदर्शी नेताओं के योगदान को याद करना और उनसे प्रेरणा लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनकी विरासत हमें सिखाती है कि एक छोटा सा कदम भी राष्ट्र की प्रगति में बड़ा योगदान दे सकता है।